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भ्रष्टाचार क्यों न हो ?

अंतहीन
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फोटो क्रेड़िट- न्यूज लॉन्ड्री
फोटो क्रेड़िट- न्यूज लॉन्ड्री

क्या भारतीय लोकतंत्र भ्रष्टाचार करने वालों के लिए ऑक्सीजन का काम करती है ? पिछले दिनों जिस तरह से भ्रष्टाचारी को बचाने में सरकार के साथ राजनीतिक पार्टियों लगी रही इससे सवाल उठना लाजमी है. पक्ष हो या विपक्ष सब अपने को अच्छा बताने की होड़ में लगकर अपने-अपने भ्रष्टाचार को छुपाने में लगी रही. कहीं कुछ उजागर भी हुआ तो दूसरे को अधिक भ्रष्ट बताने का कुतर्क दिया जाने लगा।RTI में शामिल होने के प्रश्न पर जिस तरह राजनीतिक दल एकजुट हो गई यह सवाल और मजबूत होने लगा.  भ्रष्टाचार की जड़ में जाकर इसके कारण को देखें तो कई कारण नजर आते हैं जो हमारे लोकतंत्र के कमजोर होने से उत्पन्न हुए हैं. भारत के लोकतंत्र में आई विसंगतियों की तरफ ध्यान दें तो हाल बेहद निराश करने वाले हैं.

खर्चीला चुनाव, भ्रष्टाचार की जड़

लोकतंत्र में चुनाव के समय प्रत्यासियों का चुनाव प्रचार में ज्यादा से ज्यादा खर्च करने की परंपरा चल निकली है. चुनाव आयोग की लाख कोशिशों के बाद भी चुनावी खर्च का सही-सही ब्योरा कभी नहीं मिल पाता. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि अधिकतर राजनेता एक बड़े झूठ के साथ राजनीति शुरु करते हैं. अपने शपथ पत्र में नियम के मुताबिक तय की गई राशि से ज्यादा न खर्च करने का झूठ. जबकि चुनाव में तय राशि से कई गुणा ज्यादा खर्च होता है. तो समान्य सी बात है कमर तोड़ खर्च के बाद उस पैसे की वसूली भी उन्हें करनी होती है. व्यापार का एक साधारण सा नियम जो सब जानते हैं. लागत मूल्य की वसूली करना वह भी मुनाफे के साथ.  हो भी यही रहा है. घोटालों की लंबी चौड़ी लिस्ट. यहां ये देखना ज्यादा जरूरी है कि अब किसी पार्टी विशेष का चरित्र घोटालों की संख्या को घटा बढ़ा नहीं सकता. कोई भी पार्टी खुद को सत्ता में रहने के दौरान भ्रष्टाचार से अछूता नहीं बता सकती है. जब जिसे मौका मिला, जो पार्ची सत्ता में रही चाहे वो राज्य हो या केंद्र हर स्तर पर भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए हैं.

लोकतंत्र में भाई-भतीजावाद

लोकतंत्र को राजशाही का तोड़ माना गया था. मगर आज लोकतंत्र में परिवारवाद की परंपरा चल निकली है. यह रोग लगभग सभी छोटी-बड़ी पार्टी को लग चुका है. वैसे शिव सेना, समाजवादी पार्टी, आरजेडी द्रमुक से लेकर कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस, सपा, राजद, बीजू जनता दल, लोक दल और इनेलो जैसी न जाने कितनी राजनीतिक पार्टियां हैं जिनमें वंशवाद की परंपरा हावी है। राजनीति में होना फायदे का धंधा माना जाने लगा है।सत्ता का मतलब घोटाला होता जा रहा है. और देखा जाए तो सत्ता की होड़ नहीं ये होड़ घोटाला करने की होती है. सत्ता तो घोटालों के लिए सिर्फ मौका देता है

ये तो सच है कि मानव समाज के लिए लोकतंत्र से अच्छा कोई दूसरा तंत्र नहीं हो सकता जो सबको समानता से जीने दे. जहां नागरिक के अधिकारो की रक्षा हो सके. हमारे इतिहास ने देखा है राजकाज के सारे तंत्र को. कबीले से लेकर सामंती राजा महराजा का युग या भारत की गुलामी के वो 1200 साल जिसमे मुगल शासकों के शासन का तरीका रहा हो या अंग्रेजों का निरंकुश शासन. लोकतंत्र हमारे देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए वरदान है. अबतक जिन देशो में तानाशाह शासन था वह धीरे-धीरे खत्म होता चला जा रहा है. हमारे पड़ोसी मुल्क नेपाल से लेकर लिबिया आदि देशों का लोकतंत्र की तरफ लौटना मानवता के लिए सुखद संकेत है. इन सब से कुल मिलाकर इतना तो तय है कि फिलहाल लोकतंत्र की लाख बुराई कर लें लेकिन इस से अच्छा तंत्र हमारे पास मौजूद नहीं. अब जरूरत है चुनाव सुधार की तरफ अधिक जोर देकर लोकतंत्र को मजबूत बनाने की.

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